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ark vani
ark vani
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प्रतीक्षा का वृहद् अनुभव मुझे भी हुआ है.प्रेम का इक विरल अनुभव मुझे भी हुआ है.जिसके खुले केशों से झरतीऔर घुलकर के अनिल मेंबिखर जाती वो महक….या, पर्वतों की ओट सेचुपचाप कोई बलखाती हुईनदिया की जैसीअटखेलियाँ करती हुई;और फिर सहसा! लाज से,छुपकर के सीने से लिपट जाती हुईउस अप्सरा के सानिध्य का वोसुखद अनुभव मुझे भी हुआ है….उस रात की थी श्रांत छविजिसने बनाया पाश वो,अधखुले ओठों पे फैलीसुरमई मुस्कान वो –और, व्यक्त करती नयन सेअनकही बातें कई….और, रात की वीरानी को हरतेदग्ध इच्छाएं लिए ह्रदय मेंमधुमास के भ्रमपूर्ण पल में,झींगुरों के मस्त कोलाहल का वोमधुर अनुभव मुझे भी हुआ है.दुष्प्राप्य है ये जानता हूँ,और कंटक हैं डगर मेंसह्श्रों ये मानता हूँपर, भावना का मर्म ऐसाप्रेम की है नियति इतनीयुगों तक की चिर प्रतीक्षाअनवरत चलती तपस्या….कुपित ऋषि की उस परीक्षाऔर उस अभिशप्त त्यक्ताके विरह की वेदना साकरुण अनुभव मुझे भी हुआ है.

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